Wednesday, July 24, 2013

एक नजर बाल-आश्रमो की ओर

चाइल्डलाईन शिमला को सन् 2010 में  निःशुल्क फोन सेवा 1098 पर फोन आया और बताया कि खलीनी में एक बच्चा है जो कि मानसिक रूप से अक्षम  है। चाइल्डलाईन शिमला द्वारा  इस केस में हस्तक्षेप किया गया और बच्चे को बाल कल्याण समिति में पेश किया तथा बाल कल्याल समिति ने बच्चे की चिकित्सीय जांच करवाई  जिसमें बच्चा 76ः मानसिक रूप से अक्षम पाया गया । बाल कल्याल समिति के सहयोग से बच्चे को आश्रय प्रदान किया गया । बच्चा टुटीकण्डी आश्रम में रखा गया । इस तरह चाइल्डलाइ्र्रन द्वारा 6 और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को आश्रय दिलवाया गया।
child labor in shimla 
अब हम बात करते हैं बाल आश्रमों की जिम्म्वारी की जहां उन्हें आश्रय तो मिल गया लेकिन उनके विकास के लिए कोई विषेष कदम नहीं उठाये जा रहे है। उनके अधिकारों को अनदेखा किया जा रहा है:-
शिक्षा के लिए केाई भी सुविधा नहीं ।
ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं करवाई जाती जिसमें भाग लेकर वह अपना बौद्धिक व मानसिक विकास कर सकंे।
क्या कोई व्यवसायिक प्रशिक्षण है जिसमें इन बच्चों का मन लग सके या हम ये भी कह सकते है ऐसा कोई साधन नही है जिनके येे हकदार है?
बालअधिकार जो हमारे संविधान में उल्लेखित हैं, वहीं तक सीमित हैं?
सुबह उठना खाना, खाना और पूरा दिन बैठकर रात का इन्तजार करना रात कब होगी। खाना खाना है और सो जाना है।
यह केवल एक आश्रम की स्थिति नहीं, बल्कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी आश्रमों की है। कब तक ऐसा ही चलता रहेगा और क्यों? यह एक मुद्दा है जिसका समाधान किया जाना अति आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि सम्बन्धित आश्रमों को सन्दर्भित आवष्यक निर्देश दिए जाएं या सरकार द्वारा बच्चों के हितों को लेकर ठोस नीति बनाने की आवष्यकता है।
कुछ अन्य मुद्दे:
आज हमारे शहर के सभी कोने में सरकारी व रिहाइशी भवनों का निर्माण हो रहा है। जिसमें लगभग एक भवन में 6.7 परिवार (प्रवासी मजदूरों के परिवार) काम करते है  इसमें महिलाएं भी कार्य करती है और उनके बच्चे जिनकी आयु 6 साल से कम है ।बच्चे पूरा दिन अपनी मां के साथ रहते है और पूरा दिन रेत और सिमैन्ट पर खेलते हैं और बहुत सारी माताएं अपने बच्चे को पीठ में उठा कर कार्य करती है ।
यदि हम शिमला कि बात करें तो उच्च न्यायालय के समीप पार्किंग का निर्माण हो रहा है वहा पर लगभग 6 या सात बच्चे है जो कि अपनी माताओं के साथ होते है और मां अपने बच्चों के साथ कार्य करती है। यह सब हमारे माननीय न्यायमूर्ति भी देखते हैं और अन्य कानून को जानने वाले लोग भी परन्तु किसी की भी नजर उन पर नहीं या उनको अनदेखा किया जा रहा है जो सुबह से रात तक मिट्टी और रेत में खेलते हैं।
प्रशासन के पास ऐसे बच्चों के लिए पालनाघर की सुविधा है जोकि ऐसे बच्चों के लिए उपयोग की जानी चाहिए परन्तु यह सुविधा भी केवल मात्र  किताबो में ही रह गई है। उन तक नही पहुंच पाती जिन्हें इस सुविधा की आवश्यकता है।
यह सुविधा केवल  सेमिनारों और कार्यशालाओं तक सीमित रह गई  है।
भीख मांगता बच्चाः
शिमला में बच्चे भीख मांग रहे है जिनकी आयु 10 साल से कम है सभी बच्चे बाहरी राज्य से आते है। कई बच्चे अपने माता-पिता व रिश्तेदारों के साथ आते है और बच्चों से भीख मंगवाते है। यदि हम शिक्षा के अधिकार की बात करें तो ये बच्चे इस अधिकार से वंचित रह जाते है। क्योंकि यह बच्चे घुमन्तु परिवार के होते है और परिवार के साथ घूमते है और बच्चों के माता पिता बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर करते है। ये बात चाइल्डलाईन को भीख माॅगने वाले बच्चे ने कही है।
यह समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है ।
मजदूरी के दलदल में फंसा बचपनः
बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन पल है, न किसी की चिंता और न किसी की कोई जिम्मेदारी । बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना कूदना और पढ़ना  लेकिन जरूरी नहीं सभी का बचपन ऐसा ही हो।
बाल मजदूरी से आप सभी वाकिफ होंगें। कोई भी  ऐसा बच्चा जो 14 साल से कम वर्ष और जीविका के लिए कार्य करता हो। बच्चों का जीवन बाल मजदूरी के दलदल में फंसता जा रहा है। बाल मजदूरों का पूरे भारत का आंकड़ा देख कर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे ।
बड़े शहरों के साथ .2 आपको छोटे शहरों में भी हर गली और ढाबों में राजू, छोटू, मुन्नी मिल जाएगी। जोकि बाल मजदुरी की गिरफ्त में आ चुके  हं। यह केवल बाल मजदूरी तक सीमित नहीं है  बल्कि इनके साथ अनेक प्रकार का शोषण भी किया जाता है जिसका जिक्र ये बच्चे किसी से नहीं कर पाते । इससे बच्चों पर बहुत मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक विकास पर गहरा प्रभाव पडता है। चाइल्डलाईन शिमला ने ऐसे कई बाल मजदूरों को छुड़ाया है, जो कई सालों तक ढाबों में कार्य कर रहें थे। चाइल्डलाईन शिमला ने बाल बन्धुवा मजदूरों को भी मुक्त किया और उन्हें उनके घर तक पहुंचाया गया । चाइल्डलाईन ने कई बच्चों को उनके घर तक पहुंचाया है ।
चाइल्डलाईन द्वारा शिमला शहर में किए जा रहे रेस्कयू आप्रेशन के बाबजूद भी ढाबा मालिक बाल मजदूरों को रख रहे हंै। उन पर बाल कानून अधिनियम (चाल्इड लेबर एक्ट) का कोई असर नहीं हो रहा है।
बाल मजदूरी को खत्म करने के साथ ही बच्चों को दो वक्त का खाना मुहैया कराना, उनका शैक्षिणिक, मानसिक व बौद्धिक विकास के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए । सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता अति आवष्यक है।


मीनाक्षी कंवर,
समन्वयक, चाइल्डलाईन शिमला


No comments:

PROTECTION & CARE OF CHILDREN

Photobucket Photobucket Photobucket